हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि, ईरान को परमाणु समृद्धिकरण का अधिकार है और उनका परमाणु बम देश को शक्तिशाली देशों के सामने “ना” कहने की क्षमता देता है। अराक़ची ने बताया कि युद्ध को रोकने का सबसे महत्वपूर्ण कारक तैयारी है, जो केवल सशस्त्र बलों में नहीं बल्कि जनता और सरकार में भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह तैयारी 12-दिन के युद्ध से पहले से भी अधिक है। उन्होंने विश्वास जताया कि कोई पुरानी गलती दोहराई नहीं जाएगी, और अगर दोहराई गई तो उसका करारा जवाब मिलेगा।
अराक़ची ने कहा कि हमेशा यह सवाल पूछा जाता रहा कि ईरान समृद्धिकरण क्यों चाहता है। उनका जवाब था,हमारा लक्ष्य बम या हथियार नहीं है। हम समृद्धिकरण चाहते हैं क्योंकि यह हमारा अधिकार है, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि इसे नहीं होना चाहिए।उन्होंने यह भी जोड़ा कि परमाणु बम देश को दूसरों के सामने ना कहने की शक्ति देता है और यही हमारी ताक़त है।
अराक़ची ने पश्चिमी देशों को स्पष्ट संदेश दिया, हमने परमाणु समझौते से बाहर खुद को निकाला। आप चाहते हैं कि हमें यह अधिकार न हो, लेकिन हम वैधता साबित करने के लिए बातचीत के लिए तैयार हैं। ईरानी परमाणु बम ताक़तवर देशों के सामने ना कहने की क्षमता है। यह क्षमता इस्लामी क्रांति से शुरू हुई और आज भी जारी है।
उन्होंने कहा कि ऐसे लोग हैं जो भारी कीमत चुकाने को तैयार हैं, लेकिन उनकी स्वतंत्रता, सम्मान और गरिमा कभी प्रभावित नहीं होती।
लगभग सभी देशों की नब्ज़ पर हाथ
अराक़ची ने न्यूयॉर्क में हुई हाल की वार्ताओं का हवाला देते हुए कहा,हम किसी की हुकूमत में नहीं हैं। यह ईरानियों की खासियत रही है और अब भी है। हमारी मुख्य ताक़त यही है। जब हम अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों में इज़रायल, अमेरिका और हेज़ेमनी जैसी समस्याओं को उठाते हैं, तो ऐसा लगता है कि यह कई देशों की नब्ज़ पर हाथ रख देता है। ईरानी कूटनीतिज्ञ हिम्मत करके मुद्दे उठाते हैं, यह हमारी विशेषता है और इसका हमें गर्व है।
अराक़ची ने कहा,जब तक अमेरिका में प्रभुत्व की प्रवृत्ति है और ईरान में इसके सामने न झुकने की प्रवृत्ति है, तब तक हमारी समस्या बनी रहेगी। शहीद रईसी की सरकार के समय, हमने बातचीत की, समझौता हुआ, बंधकों को मुक्त किया गया और हमारा पैसा कोरिया से मुक्त हुआ, लेकिन क़तर में यह फंसा रहा और इस्तेमाल नहीं हुआ।
उन्होंने आगे कहा,इस साल भी हमने बातचीत शुरू की, बीच में हम पर हमला हुआ और अमेरिका ने इसका समर्थन किया, फिर वह खुद भी इसमें शामिल हो गया। न्यूयॉर्क में बातचीत का एक अवसर था, लेकिन मांगे पूरी तरह गैर-तर्कसंगत और अव्यवहारिक थीं, जैसे सभी शर्तें मान लेना और छह महीने के लिए ‘स्नैप-बैक’ लागू करना। कौन सा समझदार इंसान इसे स्वीकार करेगा?
उन्होंने जोर देकर कहा,हम कभी भी कूटनीति को नहीं छोड़ेंगे विदेश मामलों के प्रमुख ने कहा,हम और अमेरिका के बीच कभी कोई सकारात्मक अनुभव नहीं हुआ। हम ईमानदारी से आगे बढ़े और रास्ता खोलने की कोशिश की। हमारे पास भरोसा नहीं है और हम भरोसा भी नहीं करेंगे, लेकिन बिना भरोसे के भी समझदारी से बातचीत में प्रवेश किया जा सकता है। हमने यह किया, लेकिन कभी सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली।
अराक़ची ने कहा,यह अमेरिका का स्वभाव है और फिलहाल कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिखता जिससे बातचीत संभव हो। उन्होंने आगे कहा,अगर अमेरिका समान स्तर पर, ईमानदार रवैये के साथ, परस्पर लाभ वाले समझौते के लिए, और सम्मानजनक ढंग से, वास्तविक और गंभीर बातचीत करने के लिए तैयार है, तो हम कभी भी कूटनीति को नहीं छोड़ेंगे और उसे खारिज नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा,यह बहुत जटिल है। हम कभी भी अपने लोगों के अधिकारों से समझौता नहीं करेंगे, और न ही उनके खिलाफ दबदबे और अत्याचार सहेंगे, लेकिन किसी भी समझदार समाधान के लिए हम तैयार हैं।
आपकी टिप्पणी